Sunday, September 4, 2011

गाँव की शाम

सूर्यास्त के बाद
अँधेरे से पूर्व
आ गये नीड़ पर
अपनों के पास
संवाद दिन भर का
मोहक सुकूनभरी
चहचहाहट बन
गूंजने लगे पेड़ पर
बजने लगी घंटियाँ
ईश्वर के द्वार ,
आरती की दीपक लो
हाथो से चेहरे पर ,
फिर अंतर्मन में
कल की नई ताकत
समा गयी |
आकर ग्वाले
लेट गये चबूतरे पर
दिन भर की थकान से |
उनकी संपत्ति
अपने ठिकाने ,
जल्दबाजी में
चरे हुए,
जुगाली करती
फेन गिरते जमीन पर
सफ़ेद बादल से ,
ग्वालिन मुस्करा
ले बाल्टी चरणों में बैठ
दुहने लगी
'अमृत-धारा'
'धरतीपुत्र ' भी
आ गये देहरी पर
अंगोछे से पौछते पसीना
बच गया था शायद
दिन भर की कोशिश के बाद भी,
वसन से लक्षित
दिनभर की
माँ के साथ अठखेलियाँ |
वयस्कों की टोलियाँ
घूमने लगी गलियों में ,
निगाहे खिडकियों के पार
खोजती ,अपना
हमजोली |
'लाल' आँचल से निकल
चले मिटटी से खेलने
अपने बेनाम यारो के साथ
भेदभाव रहित |
पैरों में ड़ाल गीली मिटटी,
छोटे से हाथो से
बनाते अपना विशाल घर ,
पुचकारते हुए |
ढहने के बाद
अपने हाथो से
खुद फोड़ते,हसते
दुधमुहे दांतों से
कहते ......|
'हम खेले,हम बिगाड़े'
किसी का चुपके से
ढहा के ,भाग जाते ,
घर नंगे पैर ,
भूल जायेंगे कल क्या हुआ |
बुजर्गो के बड़ते
कदम चौपाल प़र
दुनियादारी की खबर 
की खबर मिलेगी उधर ,
फिर हुक्के के संग चलेगी
'ग्राम-विकास वार्ता '