Thursday, April 7, 2016

माँ गंगा के चरणों में

निर्मल,अविरल,श्वेत तरंगो
को फिर से तुम अपनाओ माँ
नवीन प्रवाह,पुरातन रूप को
अब फिर से दोहराओ माँ ।

वही घाट हो ,वही किनारे
वही शुचिता के जयकारे हो ।
अंतर्मन भी निखर उठे
असंख्य शीश डुबारे हो ।

हर हर गंगे, हर हर माते 
गुंजायमान तीर दिखलाओ माँ ।
चमक उठे ये पावन धरा
श्रंगार वही सजाओ माँ ।

जीवनदायनी, मोक्षदायनी
प्रेरणा,नवीन स्वरूपा हो तुम ।
माना कुछ तो भूल हुई हैं
पर फिर भी मातृरूपा हो तुम ।

पर्याय तुम्हारे हैं अनन्य
स्वच्छता का भी बन जाओ माँ ।
क्षमा मांगते कोटिशः शीश
पुनः वही बन जाओ माँ ।

लेखा-जोखा जीवन का

वित्तीय वर्ष का
अंतिम महीना
लेखा-जोखा,
कर लिए टारगेट्स पुरे
मगर रह गया
बहुत कुछ
खुशियों के चेक
कैश नहीं हो पाये
आनन्द तो खातों में ही रह गया
शांति,
जो में मांग रहा था
ईश्वर से
बस टरकाते
और कर्म करने का आश्वासन देते रहें,
जिनको होना था लाभान्वित
मेरे दुलार प्यार से
उनको सिर्फ
वायदा मिला
पिकनिक पेंडिंग रही
पेरेंट्स मीटिंग का
जुर्माना
बच्चों ने उदास आँखों से भरा
माँ-बाप की तो किश्ते भी
नहीं लगी
पत्नी को डेट पर डेट मिली
पर फ़ाइल आगे नहीं बढ़ी
बस निराश आँखों से
बिगड़ी हुई
जीवन की बेलेंस शीट को
सबसे छिपा रहा हूँ
फ़ाइल सी बन गयी जिंदगी को
बस टेबल दर टेबल
सरका रहा हूँ
जिंदगी का बिल
परिवार से
लड़ झगड़ कर
अनुनय विनय से
पास करवा रहा हूँ
और शिकायतों के रिमार्क
लगवाता जा रहा हूँ ।