देख रहे हैं
आतंक की सलवटे
अनगिनत ललाटों पर
सब समझते हैं
और महसूस करते हैं
बावजूद इसके
हम सभी केवल
चोंच से चुगते हुएँ
सुधार की बातें
करते हैं,
ध्यान चुग्गे पर
रखते हैं
अख़बार पढ़ने
या लेखों के लिखने से
समस्या का हल नही
समस्या को
समझा जा सकता हैं
बदलाव खुद बदलकर
चीजों को बदलने से
आता हैं
जो हमने कभी सोचा नही
हम सोचते तो हैं
क्या सोचते हैं ?
यह पता करना हैं |