Tuesday, March 8, 2011

तुम आओं प्रिय

तुम आओं प्रिय,
फिर से |
क्यों गये तुम ?
में याद ना भी करू
मगर याद दिलाते हैं,
रेडियो पर
 बजते हुएं गाने,
सिनेमाहाल में
फिल्मो के अफ़साने 
तुम्हे बुलाते हैं प्रिय
मेरी बाईक की
पिछली सीट पर
बैठकर कोई,
कंधे पर हाथ रखता हैं,
लगता हैं शीशे में
हँसता हुआ
तेरा चेहरा दिखता हैं |
अलसुबह  आने वाला
तुम्हारा 'गुड मोर्निंग'
जगाता था मुझे,
जैसे होले से
माँ जगाती हैं
बच्चे को
अब तो फोन भी
बेगाना हो गया
रोज रुलाता हैं |
 तुम आओं प्रिय,
फिर से,
हर साजो सामान
तुम्हारे बिना,
लगते ही नही
मेरे हैं, 
हम सब का
प्राण तुम्ही हो प्रिय |


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