Sunday, February 28, 2016

ये दुकानें

ये दुकानें
बेल की तरह
सड़क से लिपट गयी हैं
छा गयी हैं हर और
किस्म-किस्म के लगा के रसभरे फल-फूल
चमका कर पत्तों को
दे रही खुला आमन्त्रण
मधुपान का
लो आनंद भौतिक संसार का
बाजार का
औकात का

चाहे कोई हो प्रजाति
कोई हो रंग-ओ-वंश
यहाँ कोई भेद नहीं
जो हम और तुम अकसर
किया करते हैं
बस शर्त यही हैं
कीमत अदा करो ।

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