वित्तीय वर्ष का
अंतिम महीना
लेखा-जोखा,
कर लिए टारगेट्स पुरे
मगर रह गया
बहुत कुछ
खुशियों के चेक
कैश नहीं हो पाये
आनन्द तो खातों में ही रह गया
शांति,
जो में मांग रहा था
ईश्वर से
बस टरकाते
और कर्म करने का आश्वासन देते रहें,
जिनको होना था लाभान्वित
मेरे दुलार प्यार से
उनको सिर्फ
वायदा मिला
पिकनिक पेंडिंग रही
पेरेंट्स मीटिंग का
जुर्माना
बच्चों ने उदास आँखों से भरा
माँ-बाप की तो किश्ते भी
नहीं लगी
पत्नी को डेट पर डेट मिली
पर फ़ाइल आगे नहीं बढ़ी
बस निराश आँखों से
बिगड़ी हुई
जीवन की बेलेंस शीट को
सबसे छिपा रहा हूँ
फ़ाइल सी बन गयी जिंदगी को
बस टेबल दर टेबल
सरका रहा हूँ
जिंदगी का बिल
परिवार से
लड़ झगड़ कर
अनुनय विनय से
पास करवा रहा हूँ
और शिकायतों के रिमार्क
लगवाता जा रहा हूँ ।
poems written on varios topics , contemporary articles , विभिन्न विषयो पर कवितायेँ , समकालीन निबंध
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitKdrm2kBbWnBUCJHDFYWJCiU799tFPqiNOiPx8zsZiDW0UwLCfBs_dfaK2mXWG3hTQTtQqXrn_bF7nnBfVhJ5Y_ytuvoC-TqXTgTesQgFkG8bWU9ESVL1dDaWTiTK1M-AdmAQUxq7FTI/s730/DSCN2689.jpg)
Thursday, April 7, 2016
लेखा-जोखा जीवन का
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment