Thursday, April 7, 2016

माँ गंगा के चरणों में

निर्मल,अविरल,श्वेत तरंगो
को फिर से तुम अपनाओ माँ
नवीन प्रवाह,पुरातन रूप को
अब फिर से दोहराओ माँ ।

वही घाट हो ,वही किनारे
वही शुचिता के जयकारे हो ।
अंतर्मन भी निखर उठे
असंख्य शीश डुबारे हो ।

हर हर गंगे, हर हर माते 
गुंजायमान तीर दिखलाओ माँ ।
चमक उठे ये पावन धरा
श्रंगार वही सजाओ माँ ।

जीवनदायनी, मोक्षदायनी
प्रेरणा,नवीन स्वरूपा हो तुम ।
माना कुछ तो भूल हुई हैं
पर फिर भी मातृरूपा हो तुम ।

पर्याय तुम्हारे हैं अनन्य
स्वच्छता का भी बन जाओ माँ ।
क्षमा मांगते कोटिशः शीश
पुनः वही बन जाओ माँ ।

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