Thursday, February 10, 2011

कलियुग चालीसा

जय कलियुग ज्ञानगुणी सागर !
जय कलियुग तू हैं लोक उजागर !!
तेरे  यहा   काम   होवे    नाना  !
तुझको  तो  पुरे  विश्व  ने माना !!
घुसखोरी  का  तू   हैं    संगी !
इस बिन होए काम न जल्दी !!
धवल वस्त्र  सर  पे  हैं  टोपा !
भ्रष्टाचारी  नेता  में  तू  ऐसा !!
हाथ जोड़  कर  करे  झूठे वादे !
पांच साल तक फिर  न झाकें !!
 खा अंडे और लगा के चन्दन !
पी  मदिरा   पण्डित करे वंदन !!
चपरासी भी  घुस  को  आतुर !
लेकर   घुस   बने    बहादुर !!
तुम्हरा चरित्र हर घर में बसियाँ !
माता पिता जब वरधाश्रम बसियाँ !!
सत्य वचन  का करो दिखावा !
झूठ  बोल  कर  करो छलावा !!
स्वहित में पर  का चैन उजाड़ें !
आवो  अपना   काम सवारें !!
चूस गरीब  को  धन घर लायें !
घर में सुख  सुविधा  लगवायें !!
माता को कहो बुढ़ियाँ मर जाई
प्रियतमा की करो खूब बढाई !!
किसी की भी जब मदद को आवें !
स्वार्थ  देख  ही  आगे  आवें !!
नही लाचारों की मदद  करो सा !
इस में कुछ बी बचत नही सा !!
स्वार्थ  दिखे  अपना  जहा ते !
गधे को बाप  बनाओं वहा ते !!
तुम उपकार उनका ही कीना !
सूद सहित जो वापस दीना !!
तुम्हारा मन्त्र अफसर ने जाना !
रसीद कते पहले दक्षिणा आना !!
नेता  बोले  आज  तो  खालू !
कल सत्ता में क्या हो न जानू !!
ईमानदारी को रखो मुख माहि !
बेईमानी बिन कुछ भी  नाही !!
छल,  प्रपंच  रिश्वत  जो लेते !
इस्वर का  ही रूप  वो  होतें !!
होते ही शादी  हो जावो न्यारे !
महंगाई   खड़ी   पैर   पसारे !!
लूटपाट   बेधडक   हो करना !
रुपयाँ हैं  काहें   को   डरना !!
जब रुपयों को दान  में  बाटें !
न्यायाधीश की कलम भी कांपे !!
नेताजी    हैं    कथा    सुनावें !
दादागिरी बिन   वोट न आवें !!
तब तक  रोग   मिटे   न पीड़ा !
मरीज न जब तक दक्षिणा दीना !!
जो सैट बार   पाठ  करे कोई !
छुटहि    बंदी    महासुख होई !!
जो यह गुणें कलिकाल चालीसा !
होय    सिद्धि    सखी  गोरिसा !!


सागरदास सदा तेरा चेरा !
किजेनाथ ह्रदयमह डेरा !!



छलिकपट हत्याकरन ,
स्वार्थी शराबी रूप !
झूठ गबन असत्य सहित ,
ह्रदय बसों कलियुग !!

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