Friday, February 25, 2011

नवयुग का निर्माण

नयें  युग के इस जीवन को,
जीवो के लिए हम दान  करें |
 इस जीर्ण जगत के पतझर में,
 नवयुग का निर्माण  करें |
 इन्द्रिय अश्वो का रथ मानव,
 छल बल से आगे बढ़ता हैं |
रह भले विस्तार लिए हो,
आड़े हो बाधक बनता हैं  |
बिठा सारथि समता का,
बंधुत्व ज्ञान प्रदान  करें |

इस जीर्ण जगत के.......

सड़ते गलते जीवन मे,
हाहाकार अँधेरा  छायाँ हैं |
निज  में लिपटा समाज हमारा,
भक्षक  बन भिक्षुक को खाया हैं |
स्वय के  बिखरे इन मोती में,
सामूहिकता का तार धरें |
इस जीर्ण जगत के.......

सड़क सिसकती बेबस को देख,
दुश्मन हैं कितने राहों में |
देख भूख को बस्ती रोती,
चलती ह राते आहो में |
कुछ दुःख बाटें कुछ सहयोग करे,
कुछ दे स्नेह  प्रेम हार गले |
इस जीर्ण जगत के.......

धरम बहुत हैं दुनिया  के,
लोगो को  बांटा  करते हैं |
एक अंश  के जीवन को,
दल धारा से  छाटा करते हैं |
अलग अलग इस टहनी को,
मानवता तने का बांध करे |
इस जीर्ण जगत के.......

तलवार धर सी बोली हैं,
रिश्तों को काटा करती हैं |
नयनो से बरसती हैं अग्नि,
अपनत्व जलाया करती हैं  |
दावानल के इस जंगल में,
प्रेम रूपी जलधार करे |
इस जीर्ण जगत के.......

विचारहीन निरउदेश्य सा,
निर्बल सा दिखता हैं जीवन |
पत्ते सारे बिखर गये,
ठूंठ सा दिखता हैं जीवन |
अस्तित्त्व को खोते इन पेड़ो में,
 नव पर्णों का संचार करें |
इस जीर्ण जगत के.......


नयें  युग के इस जीवन को,
जीवो के लिए हम दान  करें |
 इस जीर्ण जगत के पतझर में,
 नवयुग का निर्माण  करें |

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