नयें युग के इस जीवन को,
जीवो के लिए हम दान करें |
इस जीर्ण जगत के पतझर में,
नवयुग का निर्माण करें |
इन्द्रिय अश्वो का रथ मानव,
छल बल से आगे बढ़ता हैं |
रह भले विस्तार लिए हो,
आड़े हो बाधक बनता हैं |
बिठा सारथि समता का,
बंधुत्व ज्ञान प्रदान करें |
इस जीर्ण जगत के.......
इस जीर्ण जगत के.......
सड़ते गलते जीवन मे,
हाहाकार अँधेरा छायाँ हैं |
निज में लिपटा समाज हमारा,
भक्षक बन भिक्षुक को खाया हैं |
स्वय के बिखरे इन मोती में,
स्वय के बिखरे इन मोती में,
सामूहिकता का तार धरें |
इस जीर्ण जगत के.......
इस जीर्ण जगत के.......
सड़क सिसकती बेबस को देख,
दुश्मन हैं कितने राहों में |
देख भूख को बस्ती रोती,
चलती ह राते आहो में |
कुछ दुःख बाटें कुछ सहयोग करे,
कुछ दे स्नेह प्रेम हार गले |
इस जीर्ण जगत के.......
इस जीर्ण जगत के.......
धरम बहुत हैं दुनिया के,
लोगो को बांटा करते हैं |
एक अंश के जीवन को,
दल धारा से छाटा करते हैं |
अलग अलग इस टहनी को,
मानवता तने का बांध करे |
इस जीर्ण जगत के.......
इस जीर्ण जगत के.......
तलवार धर सी बोली हैं,
रिश्तों को काटा करती हैं |
नयनो से बरसती हैं अग्नि,
अपनत्व जलाया करती हैं |
दावानल के इस जंगल में,
प्रेम रूपी जलधार करे |
इस जीर्ण जगत के.......
इस जीर्ण जगत के.......
विचारहीन निरउदेश्य सा,
निर्बल सा दिखता हैं जीवन |
पत्ते सारे बिखर गये,
ठूंठ सा दिखता हैं जीवन |
अस्तित्त्व को खोते इन पेड़ो में,
नव पर्णों का संचार करें |
इस जीर्ण जगत के.......
इस जीर्ण जगत के.......
नयें युग के इस जीवन को,
जीवो के लिए हम दान करें |
इस जीर्ण जगत के पतझर में,
नवयुग का निर्माण करें |
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