Wednesday, February 9, 2011

बसंत

तुम कब  आयें  बसंत ?
कब तुम ये, रंग  बिरंगे 
फूलों को ऑ मदमाता
मौसम लायें  बसंत ?
चुपके से
कब तुम बन गयें,
सर्दी और गर्मी का
मध्यस्थ बसंत ?
कागज के चिकने पन्नो में
देख देख के रोज तुझे !
हम भूल गयें तो क्या ?
नही भूलेंगे तुझे,
तेरे अपने साथी ऑ
हमजोली बसंत !
वो देख वहां ,
भूमिपुत्र की
कर्म भूमि में
सरसों खड़ी हैं,
तेरे स्वागत में
पीले फूलों थाल लियें !
साथ हैं तुझको अर्पण को,
पकी बालियाँ ऑ
भूमिपुत्र की मुस्कान बसंत !
यौवन छलकाती रमणियां
हिरणी की चंचलता सी
तिरछी चितवन से
तुझको आमन्त्रण
देती बसंत  !
यें पंछी पोधे पर्वत नदियाँ
तेरे आगमन से,
कितने खिले खिले
से लगते बसंत !
बस तुम आते रहना बसंत !
'हे' ऋतुराज बसंत !

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