Saturday, February 26, 2011

मैं बारिश की बूंद हु


में बारिश की बूंद हु ,
पता नही हवायें कहा ?
गिरायेगी मुझको
देकर कोई
समयानुकूल रूप
हो सकता हैं
हो सकता हैं !
अनेक बूंदों के साथ
दुनिया के समन्दर में
में भी खप जाऊ !
किसे याद रहेगा ?
मेरा स्वरुप,
"में बारिश की बूंद हु !"
संघर्ष के
तपते शिलाखंडो  पर
स्वं को '
समाप्त करलु !
और यह भी की '
रेत के बन्धनों में
बंधकर धीरे धीरे
एक दिन मिट जाऊ !
मगर में "
यह सब नही चाहती
में किसी कर्म पोधे
की जड़ो में
मरना चाहती हु !
ताकि पोधे को
देखकर
लोग कर सके,
पहचान मेरी
"मैं बारिश की बूंद हु "

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