Tuesday, August 16, 2011

स्वप्न पंछी

उडान भरता स्वप्न पंछी
गिरता सा जाता हैं ,
निर्दिष्ट के धुंधलके में
डालियों सा कुछ दिखता,
नेह पाकर स्वप्न पंछी
राह उसकी ढूंढता,
उडान भरी वहां,पर यह क्या ?
रेखाओं को अद्रश्य पाता
हवा में घुटन सी आती
 स्वप्न पंछी
 गिरता सा जाता हैं |
 हर बार छला जाता हैं |
दिखती हैं फिर कोई डाल,
 सक्ती पाकर उड़ता जाता जाता हैं
 पर पहुच, फिर वहा 
 फिर छला जाता हैं |
 आसमान सिकुड़ा पाता हैं
  स्वप्न पंछी
  आखिर थकता जाता हैं |
जहाँ से चला था
अब वो भी नजर नही हैं
आखिर स्वप्न पंछी
तोड़कर सम्मोहन,
बीच चौराहे बैठ जाता हैं
और देख रहा हैं
पंख समेटे
दौड़ते सबको |

सूरज

सूरज की रौशनी का
रंग कैसा ?
समझ नही पाया
 हमेशा ही सूरज में
 रहस्य  पाया
कदाचित निगाहे
देख रही थी भेद
और वो दिखा रहा था
'एकता'
हमने सीखा विभाजन करना  
भेद-प्रभेद करना
 वो दिखा हैं समानता
निचोड़ हैं वो
हम बस समझ नही पाते

पत्ता

पेड़ का टुटा पत्ता हु में
   फिरता हु गली-गली
      कभी हवा मुझे ले जाती
   आसमान की सैर में
 बिन पंखो के हवा भरोसे
  गिर जाता हु ढ़ेर में |












नदी

जब नदी निकलती थी,
चट्टानों को नहलाकर
जगती को प्राणवान बनाने
किनारों से पुछंती थी,
बहुत दिनों का हाल
सबको अपनेपन का भाव दे
आगे बढती थी
सूर्य को अक्स बताने वाला
आईना बनती थी |
चांदनी रात में चाँद-तारो की
सहयोगिनी बनती थी |
पक्षियों का क्रीडा स्थल,
जलचरों की पृथ्वी ,
निर्मल भाव से
तन मन निर्मल करती थी
सुना था मैने,सुनो नालों
कोई नदी ऐसी बहती थी |

अस्तित्व

हवा के संग
मिट्टी के कण
अन्नत आकाश में
तलाशते शरण,
हवा का एक झोंका
जगह भुला देता
फिर भटकने को
मजबूर कर देता|
यों ठोकरे न खाता
ग़र समूह में होता |
थोड़ा ही सही
अपना एक
'अस्तित्व' होता |

दीप

जलने वाले दीप
तैयारी करना
बुझने की भी
चरमोत्कर्ष
प्राप्त करते-करते
अपने आस-पास
जला न लेना सब,
अन्यथा
जब तू बुझेगा
कौन जला आएगा,
 कौन? जलाएगा तुझको |

Friday, August 5, 2011

एक बूंद

 में एक बूंद हु
बारिश की |
पता नही हवाएं
कहा गिराएगी
मुझको ,
देकर कोई
समयानुकूल रूप
हो सकता हैं
संघर्ष के तपते
शिलाखंडो पर
छिन्न-भिन्न होना
नियति मेरी
या रेत के मोह भंवर में
फंसकर खुद को
मिट जाना हो
मगर में  मृत्यु वरण
यु नही चाहती |
अनेक बारिश की
बूंदों को संगिनी
बनकर श्रम पौधे
की जड़ो को सींचकर
प्रदत्त कर्त्तव्य पूर्ण करते
हो अंत मेरा
ताकि मेरे
कर्मफल उपभोगी
पहचान सके मेरे निशाँ |
में बारिश की बूंद हु