Friday, August 5, 2011

एक बूंद

 में एक बूंद हु
बारिश की |
पता नही हवाएं
कहा गिराएगी
मुझको ,
देकर कोई
समयानुकूल रूप
हो सकता हैं
संघर्ष के तपते
शिलाखंडो पर
छिन्न-भिन्न होना
नियति मेरी
या रेत के मोह भंवर में
फंसकर खुद को
मिट जाना हो
मगर में  मृत्यु वरण
यु नही चाहती |
अनेक बारिश की
बूंदों को संगिनी
बनकर श्रम पौधे
की जड़ो को सींचकर
प्रदत्त कर्त्तव्य पूर्ण करते
हो अंत मेरा
ताकि मेरे
कर्मफल उपभोगी
पहचान सके मेरे निशाँ |
में बारिश की बूंद हु 

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