Tuesday, August 16, 2011

सर्वसक्तिमान का गीत

इतिहास के साक्षी
निर्जन स्थलों के
खंडहरों में
होता हैं निर्माण
 सर्वसक्तिमान के
अमर गीत का
नीरव और शून्य
होती हैं धुनें उसकी
निर्जीव प्राचीन
प्रस्तर सुनते हैं,
दर्शक बन

पवानागमन से होता हैं
शब्द  निर्माण
गायक स्वयं
सर्वसक्तिमान
सर्वत्र गुंजायमान
उस संगीत को सुनु में
मेरा आगमन  
लय  तोड़ता हैं

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