उडान भरता स्वप्न पंछी
गिरता सा जाता हैं ,
निर्दिष्ट के धुंधलके में
डालियों सा कुछ दिखता,
नेह पाकर स्वप्न पंछी
राह उसकी ढूंढता,
उडान भरी वहां,पर यह क्या ?
रेखाओं को अद्रश्य पाता
हवा में घुटन सी आती
स्वप्न पंछी
गिरता सा जाता हैं |
हर बार छला जाता हैं |
दिखती हैं फिर कोई डाल,
सक्ती पाकर उड़ता जाता जाता हैं
पर पहुच, फिर वहा
फिर छला जाता हैं |
आसमान सिकुड़ा पाता हैं
स्वप्न पंछी
आखिर थकता जाता हैं |
जहाँ से चला था
अब वो भी नजर नही हैं
आखिर स्वप्न पंछी
तोड़कर सम्मोहन,
बीच चौराहे बैठ जाता हैं
और देख रहा हैं
पंख समेटे
दौड़ते सबको |
गिरता सा जाता हैं ,
निर्दिष्ट के धुंधलके में
डालियों सा कुछ दिखता,
नेह पाकर स्वप्न पंछी
राह उसकी ढूंढता,
उडान भरी वहां,पर यह क्या ?
रेखाओं को अद्रश्य पाता
हवा में घुटन सी आती
स्वप्न पंछी
गिरता सा जाता हैं |
हर बार छला जाता हैं |
दिखती हैं फिर कोई डाल,
सक्ती पाकर उड़ता जाता जाता हैं
पर पहुच, फिर वहा
फिर छला जाता हैं |
आसमान सिकुड़ा पाता हैं
स्वप्न पंछी
आखिर थकता जाता हैं |
जहाँ से चला था
अब वो भी नजर नही हैं
आखिर स्वप्न पंछी
तोड़कर सम्मोहन,
बीच चौराहे बैठ जाता हैं
और देख रहा हैं
पंख समेटे
दौड़ते सबको |
No comments:
Post a Comment