हवा के संग
मिट्टी के कण
अन्नत आकाश में
तलाशते शरण,
हवा का एक झोंका
जगह भुला देता
फिर भटकने को
मजबूर कर देता|
यों ठोकरे न खाता
ग़र समूह में होता |
थोड़ा ही सही
अपना एक
'अस्तित्व' होता |
मिट्टी के कण
अन्नत आकाश में
तलाशते शरण,
हवा का एक झोंका
जगह भुला देता
फिर भटकने को
मजबूर कर देता|
यों ठोकरे न खाता
ग़र समूह में होता |
थोड़ा ही सही
अपना एक
'अस्तित्व' होता |
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