Monday, August 22, 2011

बदलो अपनी दृष्टी

बदलो अपनी दृष्टी
स्वय बदलकर देखो
आकर्षक मनोहर,
मुस्कान लकीरे नही
श्रम व वेदना की ,
झुरीयाँ देखो |
फुल और कली में क्या ?
पत्ते और टहनी में क्या ?
देखना है तो बीज का त्याग देखो
उद्धि की हिलोरे ,
पक्षी की किलोले,
नदियों के प्रपात,
चिड़ियाँ की चहके
वसंत ऋतु और
कोयल की कूके.
अब नही है युग यह वर्णन का .
मौका है जीवन दर्शन का.
अब झोपड़ पट्टी बस्तियां
होंगी तुम्हारी मस्तियाँ |
प्रकृति के दर्शन होंगे तुमको
भूखे पिचके पेटों में |
सूक्ष्म त्रुटी पे भरी यातना,
ढाबो पर सहते बच्चो में
भो न अब कल्पना धारा में
 वास्तविकता चट्टानें देखो ;
बदलो अपनी दृष्टी,
स्वय बदलकर  देखो |

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